तेरे हाथों में पैवस्त
मेख़ों से बहता लहू
कोर आँखों पे छिड़का
तो पलकों की चिलमन से
ता-हद्द-ए-इम्काँ
बसारत के हर ज़ाविए पर
अजब नूर की धारियाँ
तह-ब-तह तीरगी की रवा चीरती
अन-गिनत मिशअलें
आगही के दरीचों में
इरफ़ान के आईनों में
दमकने लगीं
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
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तेरी पहचान के लाखों अंदाज़
दश्त मेरी ही दुहाई देगा
चोट नई है लेकिन ज़ख़्म पुराना है
हर सम्त सुकूत बोलता है
दिल जलाया तिरी ख़ुशी के लिए
ख़ुद को जब तेरे मुक़ाबिल पाया
खुल के रो लूँ तो ज़रा जी सँभले
कहाँ है शोरीदा-सर मुसाफ़िर
सँवारे आख़िरत या ज़िंदगी को
दर्द की रात ने ये रंग भी दिखलाए हैं
बसारत
कहाँ जा रही हो?