खुल के रो लूँ तो ज़रा जी सँभले
मुस्कुराना ही मसर्रत तो नहीं
Parveen Shakir
Rahat Indori
Habib Jalib
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Allama Iqbal
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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दिल जलाया तिरी ख़ुशी के लिए
तुझ को अब कोई शिकायत तो नहीं
सफ़र-ए-आगही
उठी थीं आँधियाँ जिन को बुझाने
कहाँ है शोरीदा-सर मुसाफ़िर
चोट नई है लेकिन ज़ख़्म पुराना है
दर्द की रात ने ये रंग भी दिखलाए हैं
पुल-सिरात
सँवारे आख़िरत या ज़िंदगी को
बसारत
जब बाँटना ही अज़ाब ठहरा
सोचते हैं तो कर गुज़रते हैं