कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
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डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
चाँद रात
निक-नेम
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
वो मजबूरी नहीं थी ये अदाकारी नहीं है
तेरी ख़ुश्बू का पता करती है
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है