बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
सूरज ग़ुरूब होते ही ज़ाहिर हो नूर-ए-सुब्ह
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देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
बहुत से ज़मीं में दबाए गए हैं
ग़रीब आदमी को ठाट पादशाही का
वो ही आसान करेगा मिरी दुश्वारी को
जो दिल मिरा नहीं मुझे उस दिल से क्या ग़रज़
मख़्लूक़ को तुम्हारी मोहब्बत में ऐ बुतो
मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ
हिज्र में ग़म की चढ़ाई है इलाही तौबा
करेंगे ज़ुल्म दुनिया पर ये बुत और आसमाँ कब तक
न आया कर के व'अदा वस्ल का इक़रार था क्या था
किस तरह कर दिया दिल-ए-नाज़ुक को चूर-चूर
कुछ तो कमी हो रोज़-ए-जज़ा के अज़ाब में