देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(334) Peoples Rate This
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
मुद्दत से इश्तियाक़ है बोस-ओ-कनार का
मैं चुप कम रहा और रोया ज़ियादा
होती न शरीअ'त में परस्तिश कभी ममनूअ
दिल पुकारा फँस के कू-ए-यार में
सुनते सुनते वाइ'ज़ों से हज्व-ए-मय
मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता
पौ फटते ही 'रियाज़' जहाँ ख़ुल्द बन गया
अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन
फ़र्क़ क्या मक़्तल में और गुलज़ार में
जुनूँ होता है छा जाती है हैरत
ग़रीब आदमी को ठाट पादशाही का