सुनते सुनते वाइ'ज़ों से हज्व-ए-मय
ज़ोफ़ सा कुछ आ गया ईमान में
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Jaun Eliya
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Javed Akhtar
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बाज़ी पे दिल लगा है कोई दिल-लगी नहीं
दिए जाएँगे कब तक शैख़-साहिब कुफ़्र के फ़तवे
मुझ को क्या फ़ाएदा गर कोई रहा मेरे ब'अद
वो ही आसान करेगा मिरी दुश्वारी को
दिल की चोरी में जो चश्म-ए-सुर्मा-सा पकड़ी गई
बहुत दिन दर्स-ए-उल्फ़त में कटे हैं
पौ फटते ही 'रियाज़' जहाँ ख़ुल्द बन गया
भेज तो दी है ग़ज़ल देखिए ख़ुश हों कि न हों
है अपने क़त्ल की दिल-ए-मुज़्तर को इत्तिलाअ
मख़्लूक़ को तुम्हारी मोहब्बत में ऐ बुतो
बहुत ही साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ आ गया तक़दीर से काग़ज़
ऐ सबा चलती है क्यूँ इस दर्जा इतराई हुई