चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
सँभल कर हाथ डाला कीजिए मेरे गरेबाँ पर
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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जाँ घुल चुकी है ग़म में इक तन है वो भी मोहमल
इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
बहुत ही साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ आ गया तक़दीर से काग़ज़
भेज तो दी है ग़ज़ल देखिए ख़ुश हों कि न हों
पौ फटते ही 'रियाज़' जहाँ ख़ुल्द बन गया
उसी दिन से मुझे दोनों की बर्बादी का ख़तरा था
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
जिस तरह दो-जहाँ में ख़ुदा का नहीं शरीक
मेरे लिए हज़ार करे एहतिमाम हिर्स
निकले हैं घर से देखने को लोग माह-ए-ईद
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
दिलवाइए बोसा ध्यान भी है