शहर-ए-आशोब में गुल-हा-ए-वफ़ा किस को दूँ
शहर-ए-आशोब में गुल-हा-ए-वफ़ा किस को दूँ
कौन मुख़्लिस है मैं इल्ज़ाम-ए-वफ़ा किस को दूँ
शहर के शोर में सहराओं का सन्नाटा है
देर से सोच रहा हूँ कि सदा किस को दूँ
वो तो यूसुफ़ था मगर कोई भी याक़ूब नहीं
ख़ूँ में डूबी हुई मैं उस की क़बा किस को दूँ
शहर में वैसे मेहरबान बहुत सारे थे
कौन क़ातिल था मिरा हाए दुआ किस को दूँ
शहर-ए-बे-दाद मैं हर शख़्स है पत्थर 'पाशा'
किस की ज़ंजीर हिलाऊँ मैं सदा किस को दूँ
(418) Peoples Rate This