उन के घर में चाँद और तारे अपने घर में आग
उन के घर में चाँद और तारे अपने घर में आग
अपनी अपनी क़िस्मत प्यारे अपना अपना भाग
आज वो शायद मेरे घर में रात गए तक आएँ
भोर समय से छत पर अपनी बोल रहा है काग
ये जग तो कल-जुग है प्यारे इस जग में आनंद कहाँ
जितनी जल्दी भाग सके तू इस धरती से भाग
बूढ़ी धरती ऐसी नारी जिस के सौ सौ रूप
इस के कहने में फँस जाते हैं कैसे कैसे धाग
इस नगरी में 'पाशा' साहब किस किस को समझाओगे
हर इक की अपनी अपनी डफ़ली हर इक का अपना राग
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