अभी तो तन्क़ीद हो रही है मिरे मज़ाक़-ए-जुनूँ पे लेकिन
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों की बरहमी का सवाल आया तो क्या करोगे
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मुद्दतों हम ने ग़म सँभाले हैं
वो हर मक़ाम से पहले वो हर मक़ाम के बाद
आलम-ए-सोज़-ए-तमन्ना बे-कराँ करते चलो
बहुत काम लेने हैं दर्द-ए-जिगर से
कूचा-ए-यार मरकज़-ए-अनवार
ये सब रंगीनियाँ ख़ून-ए-तमन्ना से इबारत हैं
मैं अपने ग़म-ख़ाना-ए-जुनूँ में
हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का
तलब की आग किसी शोला-रू से रौशन है
ये गर्दिश-ए-ज़माना हमें क्या मिटाएगी
हवादिस हम-सफ़र अपने तलातुम हम-इनाँ अपना
ब-क़द्र-ए-जोश-ए-जुनूँ तार तार भी न किया