बहुत काम लेने हैं दर्द-ए-जिगर से
कहीं ज़िंदगी को क़रार आ न जाए
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जहान-ए-आरज़ू आवाज़ ही आवाज़ होता है
तुम को भी शायद हमारी जुस्तुजू करनी पड़े
हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का
रास्ता है कि कटता जाता है
मैं अपने ग़म-ख़ाना-ए-जुनूँ में
कौन याद आ गया अज़ाँ के वक़्त
वो कब आएँ ख़ुदा जाने सितारो तुम तो सो जाओ
ये सब रंगीनियाँ ख़ून-ए-तमन्ना से इबारत हैं
अभी तो तन्क़ीद हो रही है मिरे मज़ाक़-ए-जुनूँ पे लेकिन
तुम्हें जो मेरे ग़म-ए-दिल से आगही हो जाए
हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए
कितने शोरीदा-सर मोहब्बत में