रास्ता है कि कटता जाता है
फ़ासला है कि कम नहीं होता
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वो हर मक़ाम से पहले वो हर मक़ाम के बाद
वो कब आएँ ख़ुदा जाने सितारो तुम तो सो जाओ
तुम्हारी गलियों में फिर रहा हूँ
मुझे तो इस दर्जा वक़्त-ए-रुख़्सत सुकूँ की तल्क़ीन कर रहे हो
आज जुनूँ के ढंग नए हैं
तुम न मानो मगर हक़ीक़त है
हस्ती को अपनी शोला-ब-दामाँ करेंगे हम
कूचा-ए-यार मरकज़-ए-अनवार
हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का
मुद्दतों हम ने ग़म सँभाले हैं
वक़्त करता है परवरिश बरसों