हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का
आए दुनिया हमारे साथ चले
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ये गर्दिश-ए-ज़माना हमें क्या मिटाएगी
होंटों पे हँसी आँख में तारों की लड़ी है
मुझे तो इस दर्जा वक़्त-ए-रुख़्सत सुकूँ की तल्क़ीन कर रहे हो
अब ये आलम है कि ग़म की भी ख़बर होती नहीं
आज 'क़ाबिल' मय-कदे में इंक़लाब आने को है
आज जुनूँ के ढंग नए हैं
हस्ती को अपनी शोला-ब-दामाँ करेंगे हम
उन की पलकों पर सितारे अपने होंटों पे हँसी
कोई दीवाना चाहे भी तो लग़्ज़िश कर नहीं सकता
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गरेबाँ का शुऊर आ जाएगा
अभी तो तन्क़ीद हो रही है मिरे मज़ाक़-ए-जुनूँ पे लेकिन
ग़म छेड़ता है साज़-ए-रग-ए-जाँ कभी कभी