हम ने उस के लब ओ रुख़्सार को छू कर देखा
हौसले आग को गुलज़ार बना देते हैं
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Parveen Shakir
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Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
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आज जुनूँ के ढंग नए हैं
आज 'क़ाबिल' मय-कदे में इंक़लाब आने को है
ये गर्दिश-ए-ज़माना हमें क्या मिटाएगी
हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का
कुछ और बढ़ गई है अंधेरों की ज़िंदगी
तुम न मानो मगर हक़ीक़त है
अब ये आलम है कि ग़म की भी ख़बर होती नहीं
कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ
हस्ती को अपनी शोला-ब-दामाँ करेंगे हम
जहान-ए-आरज़ू आवाज़ ही आवाज़ होता है
दिल-ए-दीवाना अर्ज़-ए-हाल पर माइल तो क्या होगा
रास्ता है कि कटता जाता है