ये गर्दिश-ए-ज़माना हमें क्या मिटाएगी
हम हैं तवाफ़-ए-कूचा-ए-जानाँ किए हुए
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
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मुझे तो इस दर्जा वक़्त-ए-रुख़्सत सुकूँ की तल्क़ीन कर रहे हो
तुम न मानो मगर हक़ीक़त है
तुम को भी शायद हमारी जुस्तुजू करनी पड़े
सुराही का भरम खुलता न मेरी तिश्नगी होती
रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक मुकम्मल इंक़लाब
कौन याद आ गया अज़ाँ के वक़्त
वो हर मक़ाम से पहले वो हर मक़ाम के बाद
हवादिस हम-सफ़र अपने तलातुम हम-इनाँ अपना
आज जुनूँ के ढंग नए हैं
ज़माना दोस्त है किस किस को याद रक्खोगे
हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए
कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ