ज़माना दोस्त है किस किस को याद रक्खोगे
ख़ुदा करे कि तुम्हें मुझ से दुश्मनी हो जाए
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कूचा-ए-यार मरकज़-ए-अनवार
तज़ाद-ए-जज़्बात में ये नाज़ुक मक़ाम आया तो क्या करोगे
तुम्हारी गलियों में फिर रहा हूँ
तुम न मानो मगर हक़ीक़त है
रास्ता है कि कटता जाता है
हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए
आज जुनूँ के ढंग नए हैं
कौन याद आ गया अज़ाँ के वक़्त
ग़म-ए-जहाँ के तक़ाज़े शदीद हैं वर्ना
कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ
मैं अपने ग़म-ख़ाना-ए-जुनूँ में
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गरेबाँ का शुऊर आ जाएगा