ग़म-ए-जहाँ के तक़ाज़े शदीद हैं वर्ना
जुनून-ए-कूचा-ए-दिलदार हम भी रखते हैं
Wasi Shah
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Anwar Masood
Javed Akhtar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(365) Peoples Rate This
ज़माना दोस्त है किस किस को याद रक्खोगे
अभी तो तन्क़ीद हो रही है मिरे मज़ाक़-ए-जुनूँ पे लेकिन
वो कब आएँ ख़ुदा जाने सितारो तुम तो सो जाओ
दिन छुपा और ग़म के साए ढले
कोई दीवाना चाहे भी तो लग़्ज़िश कर नहीं सकता
हवादिस हम-सफ़र अपने तलातुम हम-इनाँ अपना
तुम्हारी गलियों में फिर रहा हूँ
होंटों पे हँसी आँख में तारों की लड़ी है
कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ
तज़ाद-ए-जज़्बात में ये नाज़ुक मक़ाम आया तो क्या करोगे
मुद्दतों हम ने ग़म सँभाले हैं
आज जुनूँ के ढंग नए हैं