उन की पलकों पर सितारे अपने होंटों पे हँसी
क़िस्सा-ए-ग़म कहते कहते हम कहाँ तक आ गए
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दिन छुपा और ग़म के साए ढले
ज़माना दोस्त है किस किस को याद रक्खोगे
आज जुनूँ के ढंग नए हैं
हादसे ज़ीस्त की तौक़ीर बढ़ा देते हैं
ब-क़द्र-ए-जोश-ए-जुनूँ तार तार भी न किया
मुझे तो इस दर्जा वक़्त-ए-रुख़्सत सुकूँ की तल्क़ीन कर रहे हो
कितने शोरीदा-सर मोहब्बत में
कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ
कुछ और बढ़ गई है अंधेरों की ज़िंदगी
हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए
कूचा-ए-यार मरकज़-ए-अनवार