अश्क-ए-ग़म ले के आख़िर किधर जाएँ हम आँसुओं की यहाँ कोई क़ीमत नहीं
आप ही अपना दामन बढ़ा दीजिए वर्ना मोती ज़मीं पर बिखर जाएँगे
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उम्र जूँ जूँ बढ़ती है दिल जवान होता है
राज़ ये सब को बताने की ज़रूरत क्या है
शब-ख़ून का ख़तरा है अभी जागते रहना
आशियाँ जल गया गुल्सिताँ लुट गया हम क़फ़स से निकल कर किधर जाएँगे
यही वफ़ा का सिला है तो कोई बात नहीं
हुजूम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ है क्या ग़ज़ल कहिए
लज़्ज़त-ए-ग़म बढ़ा दीजिए
ये मेरी तमन्ना है प्यासों के मैं काम आऊँ
आशियाँ जल गया, गुल्सिताँ लुट गया, हम क़फ़स से निकल कर किधर जाएँगे