Ghazals of Rajinder Manchanda, Bani (page 2)

Ghazals of Rajinder Manchanda, Bani (page 2)
नामराजेन्द्र मनचंदा बानी
अंग्रेज़ी नामRajinder Manchanda, Bani
जन्म की तारीख1932
मौत की तिथि1981
जन्म स्थानDelhi

मस्त उड़ते परिंदों को आवाज़ मत दो कि डर जाएँगे

मैं उस की बात की तरदीद करने वाला था

मैं चुप खड़ा था तअल्लुक़ में इख़्तिसार जो था

लिबास उस का अलामत की तरह था

कोई भूली हुई शय ताक़-ए-हर-मंज़र पे रक्खी थी

ख़ाक ओ ख़ूँ की वुसअतों से बा-ख़बर करती हुई

कहाँ तलाश करूँ अब उफ़ुक़ कहानी का

इधर की आएगी इक रौ उधर की आएगी

हम हैं मंज़र सियह आसमानों का है

हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं

हमें लपकती हवा पर सवार ले आई

गुज़र रहा हूँ सियह अंधे फ़ासलों से मैं

घनी-घनेरी रात में डरने वाला मैं

ग़ाएब हर मंज़र मेरा

फ़ज़ा कि फिर आसमान भर थी

इक गुल-ए-तर भी शरर से निकला

इक ढेर राख में से शरर चुन रहा हूँ मैं

दोस्तो क्या है तकल्लुफ़ मुझे सर देने में

दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला

दिलों में ख़ाक सी उड़ती है क्या न जाने क्या

दिल में ख़ुशबू सी उतर जाती है सीने में नूर सा ढल जाता है

देखता था मैं पलट कर हर आन

दमक रहा था बहुत यूँ तो पैरहन उस का

छुपी है तुझ में कोई शय उसे न ग़ारत कर

चाँद की अव्वल किरन मंज़र-ब-मंज़र आएगी

चमकती आँख में सहरा दिखाई साफ़ देता है

चली डगर पर कभी न चलने वाला मैं

बजाए हम-सफ़री इतना राब्ता है बहुत

बहुत कुछ मुंतज़िर इक बात का था

अली-बिन-मुत्तक़ी रोया

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