Ghazals of Ram Krishn Muztar

Ghazals of Ram Krishn Muztar
नामराम कृष्ण मुज़्तर
अंग्रेज़ी नामRam Krishn Muztar

ये टूटी कश्तियाँ और बहर-ए-ग़म के तेज़ धारे हैं

ये घनी छाँव ये ठंडक ये दिल-ओ-जाँ का सुकूँ

वो रह-ओ-रस्म न वो रब्त-ए-निहाँ बाक़ी है

शब-ए-ग़म की सहर नहीं होती

रक़्स-ए-शबाब-ओ-रंग-ए-बहाराँ नज़र में है

फिर कोई ख़लिश नज़्द-ए-राग-ए-जाँ तो नहीं है

फिर भीग चलीं आँखें चलने लगी पुर्वाई

मुस्तक़िल दीद की ये शक्ल नज़र आई है

मोहब्बत हासिल-ए-दुनिया-ओ-दीं है

मिरी ज़िंदगी भी तू है मिरा मुद्दआ' भी तू है

मिरी निगाह में ये रंग-ए-सोज़-ओ-साज़ न हो

मेरे तसव्वुरात में अब कोई दूसरा नहीं

मसअला ये भी ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ आसाँ हो गया

मजबूर तो बहुत हैं मोहब्बत में जी से हम

क्या ग़ज़ब है कि मुलाक़ात का इम्काँ भी नहीं

ख़िरामाँ शाहिद-ए-सीमीं बदन है

कहीं राज़-ए-दिल अब अयाँ हो न जाए

गर्दिश-ए-जाम भी है रक़्स भी है साज़ भी है

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

दर्द-ए-हयात-ए-इश्क़ है नग़्मा-ए-जाँ-गुदाज़ में

बहारें और वो रंगीं नज़ारे याद आते हैं

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