गर्म इन रोज़ों में कुछ इश्क़ का बाज़ार नहीं
बेचता दिल को हूँ मैं कोई ख़रीदार नहीं
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चाह कर हम उस परी-रू को जो दीवाने हुए
बादल आए हैं घिर गुलाल के लाल
तुझ को आती है दिलासे की नहीं बात कोई
इश्क़ से बच के किधर जाएँगे हम
वो न आए तो तू ही चल 'रंगीं'
मनअ करते हो अबस यारो आज
झूटा कभी न झूटा होवे
फिर बहार आई मिरे सय्याद को पर्वा नहीं
मेरी ईज़ा में ख़ुशी जब आप की पाते हैं लोग
पा-बोस-ए-यार की हमें हसरत है ऐ नसीम
उस के कूचे में बहुत रहते हैं दीवाने पड़े