वो न आए तो तू ही चल 'रंगीं'
इस में क्या तेरी शान जाती है
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उस के कूचे में बहुत रहते हैं दीवाने पड़े
बादल आए हैं घिर गुलाल के लाल
ग़ैर की ख़ातिर से तुम यारों को धमकाने लगे
मनअ करते हो अबस यारो आज
झूटा कभी न झूटा होवे
फिर बहार आई मिरे सय्याद को पर्वा नहीं
था जहाँ मय-ख़ाना बरपा उस जगह मस्जिद बनी
ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का
चाह कर हम उस परी-रू को जो दीवाने हुए
तुझ को आती है दिलासे की नहीं बात कोई
हम जूँ चकोर ग़श हैं अजी एक यार पर