पा-बोस-ए-यार की हमें हसरत है ऐ नसीम
आहिस्ता आइओ तू हमारे मज़ार पर
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झूटा कभी न झूटा होवे
हम जूँ चकोर ग़श हैं अजी एक यार पर
था जहाँ मय-ख़ाना बरपा उस जगह मस्जिद बनी
गर्म इन रोज़ों में कुछ इश्क़ का बाज़ार नहीं
है ये दुनिया जा-ए-इबरत ख़ाक से इंसान की
हमदमो क्या मुझ को तुम उन से मिला सकते नहीं
इश्क़ से बच के किधर जाएँगे हम
मनअ करते हो अबस यारो आज
उस के कूचे में बहुत रहते हैं दीवाने पड़े
ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का
वो न आए तो तू ही चल 'रंगीं'