Ghazals of Raunaq Raza

Ghazals of Raunaq Raza
नामरौनक़ रज़ा
अंग्रेज़ी नामRaunaq Raza
जन्म स्थानShahjahanpur

ज़िंदगी के कैसे कैसे हौसले पथरा गए

उम्र भर पेश-ए-नज़र माह-ए-तमाम आते रहे

ठोकरों की शय परस्तिश की नज़र तक ले गए

शाम-ए-ग़म की है अता सुब्ह-ए-मसर्रत दी है

रात की सारी हक़ीक़त दिन में उर्यां हो गई

न जाने कौन सा मंज़र नज़र से गुज़रा था

न जाने कब से मैं गर्द-ए-सफ़र की क़ैद में था

मुझ को मत छूना कि रिस कर फूटने वाला हूँ मैं

हमारी जीत यही थी कि ख़ुद से हार आए

हमारे ख़्वाब हमारी पसंद होते गए

देख उफ़ुक़ के पीले-पन में दूर वो मंज़र डूब गया

भूली-बिसरी ख़्वाहिशों का बोझ आँखों पर न रख

अँधेरी खाई से गोया सफ़र चटान का था

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