काबे को जाता किस लिए हिन्दोस्ताँ से मैं
किस बुत में शहर-ए-हिन्द के शान-ए-ख़ुदा न थी
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हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते
आ अंदलीब मिल के करें आह-ओ-ज़ारियाँ
ज़माने में वो मह-लक़ा एक है
आदमी पहचाना जाता है क़याफ़ा देख कर
रक्खो ख़िदमत में मुझ से काम तो लो
तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे
बस अब आप तशरीफ़ ले जाइए
दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे
ज़ुल्फ़ों की तरह उम्र बसर हो गई अपनी
तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना
नाज़-ए-बेजा उठाइए किस से
किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है