अज़ाँ का काम चल जाए जो नाक़ूस-ए-बरहमन से
बड़ा ये बोझ उतरे ऐ मोअज़्ज़िन तेरी गर्दन से
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हम जाम-ए-मय के भी लब तर चूसते नहीं
जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह
उन्हीं में से कोई आए तो मयख़ाने में आ जाए
है भी कुछ या नहीं मैं हाथ लगा कर देखूँ
मर गया हूँ पे तअ'ल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
हंस के पैमाना दिया ज़ालिम ने तरसाने के बा'द
धोके से पिला दी थी उसे भी कोई दो घूँट
न आया हमें इश्क़ करना न आया
हमारी आँखों में आओ तो हम दिखाएँ तुम्हें
किसी से वस्ल में सुनते ही जान सूख गई