कभी कभी
कभी कभी तो यूँ महसूस हुआ करता है
जैसे लफ़्ज़ के सारे रिश्ते बे-मा'नी हैं
लगती है कानों को अक्सर
ख़ामोशी आवाज़ के सन्नाटे से बेहतर
सादा काग़ज़
लिखे हुए काग़ज़ से अच्छा लगता है
ख़्वाबीदा लफ़्ज़ों को आख़िर
जागती आँखों की तस्वीर दिखाएँ कैसे
पलकों पर आवाज़ सजाएँ कैसे
कभी कभी यूँ लगता है जैसे तुम मेरी नज़्में हो
जिन को पढ़ कर कभी कभी में यूँ भी सच्चा करता हूँ
लफ़्ज़ों के रिश्ते बे-मा'नी होते हैं
लफ़्ज़ कहाँ जज़्बों के सानी होते हैं
(476) Peoples Rate This