तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है
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शिकस्त
आज की रात मुरादों की बरात आई है
अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा
मिरे अहद के हसीनो
मैं पल दो पल का शाइ'र हूँ
चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
किसी को उदास देख कर
मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा