मैं ने चाहा था कि अश्कों का तमाशा देखूँ
और आँखों का ख़ज़ाना था कि ख़ाली निकला
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(456) Peoples Rate This
तू जान-ए-मोहब्बत है मगर तेरी तरफ़ भी
सुर्ख़ गुलाब और बदर-ए-मुनीर
ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे
हमारी तबाही में कुछ उस का एहसाँ भी है
मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
दामन में आँसुओं का ज़ख़ीरा न कर अभी
वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे
मुहासरा
हैरानी में हूँ आख़िर किस की परछाईं हूँ
हिरास फैल गया है ज़मीन-दानों में
ज़िंदा रहने के तज़्किरे हैं बहुत
जिस की हवस के वास्ते दुनिया हुई अज़ीज़