लटकते देखा सीने पर जो तेरे तार-ए-गेसू को
उसे दीवाने वहशत में तिरा बंद-ए-क़बा समझे
Rahat Indori
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चाहने वालों को चाहा चाहिए
तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं
गो हम शराब पीते हमेशा हैं दे के नक़्द
जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए
न चलो मुझ से तुम रक़ीबो चाल
हैं बहुत देखे चाहने वाले
जो तुम्हें याद किया करते हैं
रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए
ऐ शैख़ ये जो मानें का'बा ख़ुदा का घर है
ऐ शैख़ अपना जुब्बा-ए-अक़्दस सँभालिये
नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए