डॉज-महल

डॉज के नाम से जानाँ तुझे उल्फ़त ही सही

डॉज होटल से तुझे ख़ास अक़ीदत ही सही

उस की चाय से चिकन सूप से रग़बत ही सही

डॉज करना भी अज़ल से तिरी आदत ही सही

तू मिरी जान कहीं और मिला कर मुझ से

क़ैस ओ लैला भी तो करते थे मोहब्बत लेकिन

इश्क़-बाज़ी के लिए दश्त को अपनाते थे

हम ही अहमक़ हैं जो होटल में चले आते हैं

वो समझदार थे जंगल को निकल जाते थे

तू मिरी जान कहीं और मिला कर मुझ से

काश इस मरमरीं होटल के बड़े मतबख़ में

तू ने पकते हुए खानों को तो देखा होता

वो जो मुर्दार के क़ीमे से भरे जाते हैं

काश उन रोग़नी नानों को तो देखा होता

तू मिरी जान कहीं और मिला कर मुझ से

जानाँ! रोज़ाना तिरे लंच का बिल कैसे दूँ

मैं कोई सेठ नहीं कोई स्मगलर भी नहीं

मुझ को होती नहीं ऊपर की कमाई हरगिज़

मैं किसी दफ़्तर-ए-मख़्सूस का अफ़सर भी नहीं

तू मिरी जान कहीं और मिला कर मुझ से

घाग बैरे ने दिखा कर बड़ा महँगा मेन्यू

हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़

इश्क़ है मुझ से तो ''कॉफ़ी'' ही को काफ़ी समझो

मैं मँगा सकता नहीं मुर्ग़-मुसल्लम का तबाक़

तू मिरी जान कहीं और मिला कर मुझ से

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In Hindi By Famous Poet Sarfaraz Shahid. is written by Sarfaraz Shahid. Complete Poem in Hindi by Sarfaraz Shahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.