हुई जो दाल गिराँ और सब्ज़ियाँ महँगी
किचन में जा के भला क्या किचन-नवाज़ करे
मुआमलात-ए-मोहब्बत का अब ये आलम है
मैं प्यार प्यार करूँ और वो प्याज़ प्याज़ करे
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कोई ख़ुश-ज़ौक़ ही 'शाहिद' ये नुक्ता जान सकता है
सेंट की कजले की और ग़ाज़े की गुल-कारी के ब'अद
ईद पर मसरूर हैं दोनों मियाँ बीवी बहुत
राज़-ओ-नियाज़ में भी अकड़-फ़ूँ नहीं गई
स्पैशलिस्ट पेन-किलर दे तो कौन सा?
ऐसे लगे है नौकरी माल-ए-हराम के बग़ैर
इश्क़ में कुछ इस सबब से भी है आसानी मुझे
दफ़्तर-ए-शादी का मुन्तज़िम
ख़बर है मेरी रुस्वाई की
फ़क़त रंग ही उन का काला नहीं है
सारे शिकवे दूर हो जाएँ जो क़ुदरत सौंप दे
जश्न-ए-आज़ादी