मैं हाथ बाँधे हुए लौट आई हूँ घर में
कि मेरे पर्स में इक आरज़ू मरी हुई है
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(539) Peoples Rate This
ये तो सोचा ही नहीं उस को जुदा करते हुए
अगर बिछड़ने का उस से कोई मलाल नहीं
इक यही सोच बिछड़ने नहीं देती तुझ से
ये अपने आप पे ताज़ीर कर रही हूँ मैं
उसी के क़ुर्ब में रह कर हरी भरी हुई है
अभी से छोटी हुई जा रही हैं दीवारें
मुझ को भी कर देगा रुस्वा वो ज़माने भर में
ख़ुद चराग़ों को अंधेरों की ज़रूरत है बहुत
हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था
लौट आएगा किसी शाम यही लगता है
हम अगर सच के उन्हें क़िस्से सुनाने लग जाएँ