सफ़र का एक नया सिलसिला बनाना है
अब आसमान तलक रास्ता बनाना है
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कड़े हैं हिज्र के लम्हात उस से कह देना
ऐसे रखती है हमें तेरी मोहब्बत ज़िंदा
मुश्किल तो न था ऐसा भी अफ़्लाक से रिश्ता
ये कार-ए-बे-समराँ मुझ से होने वाला नहीं
ये ज़र्द फूल ये काग़ज़ पे हर्फ़ गीले से
मता-ए-जाँ हैं मिरी उम्र भर का हासिल हैं
किसी ने देख लिया था जो साथ चलते हुए
कब गवारा है मुझे और कहीं पर चमके
वफ़ा का शौक़ ये किस इंतिहा में ले आया
भटक रहे हैं ग़म-ए-आगही के मारे हुए