रौशनी बाँटता हूँ सरहदों के पार भी मैं
हम-वतन इस लिए ग़द्दार समझते हैं मुझे
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मैं आप अपनी मौत की तय्यारियों में हूँ
यूँ तो नहीं कि पहले सहारे बनाए थे
यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे
ज़ब्त-ए-ग़म है मिरी पोशाक मिरी इज़्ज़त रख
बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है
क्या कहूँ कैसे इज़्तिरार में हूँ
अब तिरी याद से वहशत नहीं होती मुझ को
मैं बदलते हुए हालात में ढल जाता हूँ
बस रूह सच है बाक़ी कहानी फ़रेब है
ज़ंजीर कट के क्या गिरी आधे सफ़र के बीच
बिछड़ गया था कोई ख़्वाब-ए-दिल-नशीं मुझ से