मिरे अलावा सभी लोग अब ये मानते हैं
ग़लत नहीं थी मिरी राय उस के बारे में
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(526) Peoples Rate This
मौसम-ए-हिज्र में
तुम अपनी सब्ज़ आँखें बंद कर लो
इस सोच में ही मरहला-ए-शब गुज़र गया
जब तुम मुझ से मिलने आओ
हमारे ज़ेहन में ये बात भी नहीं आई
ख़ुदा से
बस सलीक़े से ज़रा बर्बाद होना है तुम्हें
कार-ए-बेहूदा
सुन रखा था तजरबा लेकिन ये पहला था मिरा
ख़ला सा कहीं है
कार-ए-जहाँ दराज़ है
बदल जाएगा सब कुछ ये तमाशा भी नहीं होगा