Ghazals of Shahryar (page 2)

Ghazals of Shahryar (page 2)
नामशहरयार
अंग्रेज़ी नामShahryar
जन्म की तारीख1936
मौत की तिथि2012
जन्म स्थानAligarh

निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए

नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता

नशात-ए-ग़म भी मिला रंज-ए-शाद-मानी भी

नहीं रोक सकोगे जिस्म की इन परवाजों को

मोम के जिस्मों वाली इस मख़्लूक़ को रुस्वा मत करना

मिशअल-ए-दर्द फिर एक बार जला ली जाए

मंज़र गुज़िश्ता शब के दामन में भर रहा है

मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे

किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया

किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है

खुले जो आँख कभी दीदनी ये मंज़र हैं

कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ

कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल

कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें

कब समाँ देखेंगे हम ज़ख़्मों के भर जाने का

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने

जुदा हुए वो लोग कि जिन को साथ में आना था

जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा

जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस

जहाँ मैं होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा

जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है

जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है

इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं

हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के

हुजूम-ए-दर्द मिला ज़िंदगी अज़ाब हुई

हज़ार बार मिटी और पाएमाल हुई है

हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है

हवा चले वरक़-ए-आरज़ू पलट जाए

हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है

हँस रहा था मैं बहुत गो वक़्त वो रोने का था

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