अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा
Wasi Shah
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(425) Peoples Rate This
अब तो ले दे के यही काम है इन आँखों का
उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है
जिस्म की कश्ती में आ
आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए
आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है
मुझ को मिलना है 'वहीद-अख़्तर' से
तिरा ख़याल भी तेरी तरह सितमगर है
कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ
उम्मीद ओ बीम
अजीब काम
ज़िंदा रहने का ये एहसास