तुझ से मिल कर भी न तन्हाई मिटेगी मेरी
दिल में रह रह के यही बात खटकती क्यूँ है
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तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को
अक्स-ए-याद-ए-यार को धुँदला किया है
उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
वक़्त को क्यूँ भला बुरा कहिए
कोई नया मकीन नहीं आया तो हैरत क्या
हज़ार बार मिटी और पाएमाल हुई है
जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है
नया खेल
बहते दरियाओं में पानी की कमी देखना है
मुझ को ले डूबा तिरा शहर में यकता होना
उम्र का लम्बा हिस्सा कर के दानाई के नाम
वामांदगी-ए-शौक़