Ghazals of Shaikh Zahuruddin Hatim (page 3)
नाम | शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम |
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अंग्रेज़ी नाम | Shaikh Zahuruddin Hatim |
जन्म की तारीख | 1699 |
मौत की तिथि | 1783 |
जन्म स्थान | Delhi |
इस की क़ुदरत की दीद करता हूँ
इश्क़ ने चुटकी सी ली फिर आ के मेरी जाँ के बीच
इश्क़ नहीं कोई नहंग है यारो
इश्क़ में पास-ए-जाँ नहीं है दुरुस्त
इश्क़ के शहर की कुछ आब-ओ-हवा और ही है
इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास
इस वास्ते निकलूँ हूँ तिरे कूचे से बच बच
इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए
इस दौर के असर का जो पूछो बयाँ नहीं
हम को कब इंतिज़ार है फ़स्ल-ए-बहार हो न हो
होवे वो शोख़-चश्म अगर मुझ से चार चश्म
हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स
हस्ती की क़ैद से ऐ दिल आज़ाद होइए
हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया
हमें याद आवती हैं बातें उस गुल-रू की रह रह के
हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था
हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है
गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है
गज़क की इस क़दर ऐ मस्त तुझ को क्या शिताबी है
गर भला मानस है तो ख़ंदों से तू मिल मिल न हँस
फ़िक्र में मुफ़्त उम्र खोना है
एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई
एक मुद्दत से तलबगार हूँ किन का इन का
एहसान तिरा दिल मिरा क्या याद करेगा
दुनिया ख़याल-ओ-ख़्वाब है मेरी निगाह में
दिल मिरा आज यार में है गा
देखते सज्दे में आता है जो करता है निगाह
देखने से तिरे जी पाता हूँ
देखना उस की तजल्ली का जिसे मंज़ूर है
देखा किसी ने हम से ज़माने ने क्या किया