Ghazals of Shaikh Zahuruddin Hatim (page 2)
नाम | शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम |
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अंग्रेज़ी नाम | Shaikh Zahuruddin Hatim |
जन्म की तारीख | 1699 |
मौत की तिथि | 1783 |
जन्म स्थान | Delhi |
मुझे क्या देख कर तू तक रहा है
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों
मैं ज़ात का उस की आश्ना हूँ
मैं अपने दस्त पर शब ख़्वाब में देखा कि अख़गर था
मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
क्यूँकि दीवाना बेड़ियाँ तोड़े
क्या उस की सिफ़त में गुफ़्तुगू है
क्या सताते हो रहो बंदा-नवाज़
क्या हुआ गर शैख़ यारो हाजी-उल-हरमैन है
कुन के कहने में जो हुआ सो हुआ
कोई देता नहीं है दाद बे-दाद
किस सितमगर का गुनाहगार हूँ अल्लाह अल्लाह
कौन दिल है कि तिरे दर्द में बीमार नहीं
कशिश से दिल की उस अबरू-कमाँ को हम रखा बहला
कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला
करूँ हूँ रात दिन फेरे कई फेरे मियाँ साहिब
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
कहीं वो सूरत-ए-ख़ूबाँ हुआ है
जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है
जो मिरे हम-अस्र हम-सोहबत थे सो सब मर गए
जो मय-ख़ाने में जाता था क़दम रखते झिझकता था
जो कोई कि यार-ओ-आश्ना है
जिस ने आदम के तईं जाँ बख़्शा
जिस कूँ पी का ख़याल होता है
जिस को देखा सो यहाँ दुश्मन-ए-जाँ है अपना
जी तरसता है यार की ख़ातिर
जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़
जब वो आली-दिमाग़ हँसता है
जब से तुम्हारी आँखें आलम को भाइयाँ हैं
जब आप से ही गुज़र गए हम