वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत
मैं उस गली में अकेला था और साए बहुत
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मुबारक वो साअत
एक अपना दिया जलाने को
आलम में जिस की धूम थी उस शाहकार पर
मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
इस शोर-ए-तलातुम में कोई किस को पुकारे
मैं शाख़ से उड़ा था सितारों की आस में
क्या कहिए कि अब उस की सदा तक नहीं आती
अभी अरमान कुछ बाक़ी हैं दिल में
मीठे चश्मों से ख़ुनुक छाँव से दूर
ग़म-ए-दिल हीता-ए-तहरीर में आता ही नहीं
दिल के वीराने में इक फूल खिला रहता है
ख़्वाब-ए-गुल-रंग के अंजाम पे रोना आया