शकील बदायुनी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शकील बदायुनी (page 5)
नाम | शकील बदायुनी |
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अंग्रेज़ी नाम | Shakeel Badayuni |
जन्म की तारीख | 1916 |
मौत की तिथि | 1970 |
जन्म स्थान | Mumbai |
सुब्ह का अफ़्साना कह कर शाम से
शोख़ नज़रों में जो शामिल बरहमी हो जाएगी
शिकवे तिरे हुज़ूर किए जा रहा हूँ मैं
शिकवा-ए-इज़्तिराब कौन करे
शायद आग़ाज़ हुआ फिर किसी अफ़्साने का
शब की बहार सुब्ह की नुदरत न पूछिए
सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने
सरगुज़िश्त-ए-दिल को रूदाद-ए-जहाँ समझा था मैं
सर भी है पा-ए-यार भी शौक़-ए-सिवा को क्या हुआ
रूह को तड़पा रही है उन की याद
रौशनी साया-ए-ज़ुल्मात से आगे न बढ़ी
रंग-ए-सनम-कदा जो ज़रा याद आ गया
राह-ए-ख़ुदा में आलम-ए-रिन्दाना मिल गया
रह वफ़ा में कोई साहिब-ए-जुनूँ न मिला
क़स्र वीरान हुआ जाता है
पैहम तलाश-ए-दोस्त मैं करता चला गया
पहलू में दर्द-ए-इश्क़ की दुनिया लिए हुए
नुमायाँ दोनों जानिब शान-ए-फ़ितरत होती जाती है
नियाज़-ओ-नाज़ की ये शान-ए-ज़ेबाई नहीं जाती
निगाह-ए-नाज़ का इक वार कर के छोड़ दिया
नज़र-नवाज़ नज़ारों में जी नहीं लगता
नज़र से क़ैद-ए-तअय्युन उठाई जाती है
नसीब दर पे तिरे आज़माने आया हूँ
नग़्मा-ए-इश्क़ सुनाता हूँ मैं इस शान के साथ
न सोचा था ये दिल लगाने से पहले
न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है
मुझ को साक़ी ने जो रुख़्सत किया मय-ख़ाने से
मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं
मिरी ज़िंदगी है ज़ालिम तिरे ग़म से आश्कारा
मेरी दीवानगी नहीं जाती