खुला न उस पे कभी मेरी आँख का मंज़र
जमी है आँख में काई कोई दिखाए उसे
Habib Jalib
Anwar Masood
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(515) Peoples Rate This
निकाल लाया है घर से ख़याल का क्या हो
ऐसा कुछ गर्दिश-ए-दौराँ ने रखा है मसरूफ़
उस के जाने पे ये एहसास हुआ है 'शाहिद'
ख़्वाब टूटे पड़े हैं सब मेरे
चलते चलते चले आए हैं परेशानी में
ये रोज़ ओ शब का तसलसुल रवाँ-दवाँ ही रहा
कार-ए-मुश्किल ही किया दुनिया में गर मैं ने किया
बजा है ख़्वाब-नवर्दी प ख़्वाब ऐसे हों
मुझ से कहती हैं वो उदास आँखें
हूँ किस मक़ाम पे दिल में तिरे ख़बर न लगे
फ़ुग़ान-ए-रूह कोई किस तरह सुनाए उसे
कुछ ऐसे दौर भी ताहम गिरफ़्त में आए