दिल की बस्ती अजीब बस्ती है
ये उजड़ने के बा'द बस्ती है
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ख़ुश-जमालों की याद आती है
जिन की आँखों में था सुरूर-ए-ग़ज़ल
ख़ुदा शाहिद है मेरे भूलने वाले ब-जुज़ तेरे
तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है
जाने वाले कभी नहीं आते
हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है
शौक़ की नुक्ता-दानियाँ न गईं
तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है शर्त-ए-बेदारी
ज़ुल्मत-ए-शब ही सहर हो जाएगी
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
शमीम ज़ुल्फ़-ए-यार आए न आए