बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िज़ाँ के दौर में दिलकश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(512) Peoples Rate This
कैफ़ जो रूह पे तारी है तुझे क्या मालूम
हज़ार नक़्स हैं मुझ में मिरे कमाल को देख
ख़ुशी याद आई न ग़म याद आए
रंग लाया दिवाना-पन मेरा
शमीम-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार आए न आए
हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है
नज़र नीची है यार-ए-ख़ुश-नज़र की
होश ओ ख़िरद से बेगाना बन जा
शमीम ज़ुल्फ़-ए-यार आए न आए
अहल-ए-हिम्मत को बलाओं पे हँसी आती है
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है
देर से आ रही है याद तिरी