देर से आ रही है याद तिरी
क्या तुझे याद आ रहा हूँ मैं
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ज़ुल्मत-ए-शब ही सहर हो जाएगी
जब वो मसरूर नज़र आता है
हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है
शमीम ज़ुल्फ़-ए-यार आए न आए
हज़ार नक़्स हैं मुझ में मिरे कमाल को देख
ख़ुश-जमालों की याद आती है
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
बयाबानों पे ज़िंदानों पे वीरानों पे क्या गुज़री
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है
जाने वाले कभी नहीं आते
कैफ़ जो रूह पे तारी है तुझे क्या मालूम
ख़ुशी याद आई न ग़म याद आए