Ghazals of Suhail Ahmed Zaidi

Ghazals of Suhail Ahmed Zaidi
नामसुहैल अहमद ज़ैदी
अंग्रेज़ी नामSuhail Ahmed Zaidi
जन्म की तारीख1930
मौत की तिथि2007
जन्म स्थानAllahabad

उजड़े दिल-ओ-दिमाग़ को आबाद कर सकूँ

तमन्ना दिल में घर करती बहुत है

सफ़र में अब भी आदतन सराब देखता हूँ मैं

सफ़र करो तो इक आलम दिखाई देता है

साए के लिए है न ठिकाने के लिए है

सब तमाशे हो चुके अब घर चलो

पेड़ ऊँचा है मगर ज़ेर-ए-ज़मीं कितना है

नवाह-ए-जाँ में कहीं अबतरी सी लगती है

मैं क्या करूँ कोई सब मेरे इख़्तियार में है

मैं खो गया तो शहर-ए-फ़न में दस्तियाब हो गया

कुछ दफ़्न है और साँस लिए जाता है

कुछ दफ़्न है और साँस लिए जाता है

ख़ैर उस से न सही ख़ुद से वफ़ा कर डालो

जैसा हमें गुमान था वैसा नहीं रहा

जब शाम बढ़ी रात का चाक़ू निकल आया

जाँ तन का साथ दे न तो दिल ही वफ़ा करे

इसी मामूल-ए-रोज़-ओ-शब में जी का दूसरा होना

इम्कान खुले दर का हर आन बहुत रक्खा

गए मौसमों को भुला देंगे हम

फ़क़ीह-ए-शहर से रिश्ता बनाए रहता हूँ

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

आँखों को मयस्सर कोई मंज़र ही नहीं था

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