कभी तो लगता है गुमराह कर गई मुझ को
सुख़न-वरी कभी पैग़म्बरी सी लगती है
Mohsin Naqvi
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(484) Peoples Rate This
ख़ैर उस से न सही ख़ुद से वफ़ा कर डालो
नवाह-ए-जाँ में कहीं अबतरी सी लगती है
दो पाँव हैं जो हार के रुक जाते हैं
तमन्ना दिल में घर करती बहुत है
मैं क्या करूँ कोई सब मेरे इख़्तियार में है
पेड़ ऊँचा है मगर ज़ेर-ए-ज़मीं कितना है
उजड़े दिल-ओ-दिमाग़ को आबाद कर सकूँ
गए मौसमों को भुला देंगे हम
हम ने तो मूँद लीं आँखें ही तिरी दीद के बाद
हर सुब्ह अपने घर में उसी वक़्त जागना
सफ़र में अब भी आदतन सराब देखता हूँ मैं
मैं खो गया तो शहर-ए-फ़न में दस्तियाब हो गया